बादल की आगोश में चाँद छुप जाता हैं जैसे
वैसे ही तुम अपनी बाहों में मुझे छुपा जाओ
बंजर जमीं पर बारिश की फुआर से महक उठता हैं समां जैसे
वैसे ही अपने प्यार की खुशबु से मेरे मन को महका जाओ
प्यासी नदी सागर से मिलने को आतुर रहती हैं जैसे
वैसे ही तुम अपने दिल की हर धड़कन में मुझे बसा जाओ
भंवरा फूलोँ का रस पीने को बेताब हैं जैसे
वैसे ही तुम आकार अपनी दीवानी से मिल जाओ
शमां के पीछे परवाना जलता हो जैसे
वैसे तुम अपनी प्रीत से मेरे मन मंदिर में प्यार का दीप जला जाओ
लंबी काली रात के बाद, एक नयी सुबह आती है जैसे,
वैसे ही तुम मेरे जीवन के अन्धकार में अपना उजाला भर जाओ
शमां के पीछे परवाना जलता हो जैसे
वैसे तुम अपनी प्रीत से मेरे मन मंदिर में प्यार का दीप जला जाओ
लंबी काली रात के बाद, एक नयी सुबह आती है जैसे,
वैसे ही तुम मेरे जीवन के अन्धकार में अपना उजाला भर जाओ