रिश्तों की चादर
रिश्तों को चादर सा बुनना होगा
कभी अहंकार आड़े आएगा
कभी अभिमान आड़े आएगा
फिर भी यही
कोशिश करते रहना होगा
स्नेह का धागा ना टूटे कभी
बड़ा कच्चा होता हैं
संभाल करनी होती हैं
गर धागा ज्यादा खींचा तो
चटक जायेगा
फिर जोड़े से जुड़ा भी
तो गाँठ पड़ जायेगी
ज़रा सा भी मनमुटाव हो जाय तो
बीच का पुल टूटने लगता हैं
जोड़े रखने के लिए
संवाद बनाये रखना बेहद ज़रूरी हैं
गर सामने वाला
टस से मस ना भी हो तो
भी अपने हिस्से को
बुनते चलना होगा
हार नहीं माननी तय करना हैं कि
उस रिश्ते या व्यक्ति का क्या स्थान हैं
अपने मन को टटोलकर अपनी
भावनाओं उलझनों की काई को
हटाकर साफ़-साफ़ देखना होगा
रिश्तों में भावो का
प्रवाह रुक ना जाय
इसीलिए कड़वाहट की कीचड़
को जल्द से जल्द प्रेम के
बहाव से सहेजना होगा
प्रेम,आदर,अपनापन देने से ही
रिश्तों की चादर पूरी
तरह से बुनी जायेगी
फिर कभी कोई गाँठ नहीं पड़ेगी