बाद मुद्दत के मिले हैं
चलो कुछ दूर साथ चले
ख़ामोशी को रहने दे
दरमियां तेरे मेरे
एहसासात को जिए
लम्हों को थाम लें
आँसुओं की बूंदों को
पलकों में बांधे
कुछ पल ठहर जाए
खामोश-सा साहिल हैं
ज़मीन भी चुप है
यूँ ही बस
एक दूजे को निहारे
दर्द संवारें
फिर बारिश में भीगे
लब से कोई
शिकवा या शिकायत न करे
रुसवाई की भी
कोई बात न करे
चलो कुछ दूर साथ चले
और फिर मिलने
का वायदा करें
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