Thursday 4 April 2013






बाद मुद्दत के मिले हैं
चलो कुछ दूर साथ चले 
ख़ामोशी को रहने दे 
दरमियां तेरे मेरे 

एहसासात को जिए 
लम्हों को थाम लें 
आँसुओं की बूंदों को 
पलकों में बांधे
कुछ पल ठहर जाए 

खामोश-सा साहिल हैं
ज़मीन भी चुप है 
यूँ ही बस 
एक दूजे को निहारे 
दर्द संवारें 

फिर बारिश में भीगे 
लब से कोई 
शिकवा या शिकायत न करे 
रुसवाई की भी 
कोई बात न करे 

चलो कुछ दूर साथ चले 
और फिर मिलने 
का वायदा करें 

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